Pregnancy

9 Month Pregnancy in Hindi : 9 महीने की प्रेगनेंसी, लक्षण और उपचार

गर्भधारण करने के बाद महिला के लिए प्रेगनेंसी का सबसे बड़ा बदलाव आता है नवें महीने में (9 month pregnancy in Hindi)। यह ऐसा वक्त है जब डिलीवरी की तारीख नजदीक होती है। यह प्रेगनेंसी का आखिरी महीना होता है। अधिकांश महिलाएं 38-42 सप्ताह के बीच में ही बच्चे को जन्म देती है। बहुत कम मामलों में बच्चे का जन्म नियत तारीख पर होता है।

In this Article

नौवें महीने की प्रेगनेंसी क्या है? ( 9th month pregnancy in hindi)

गर्भावस्था के नौवें महीने में गर्भस्थ (pregnant in the 9 Month) शिशु का महत्वपूर्ण विकास होता है। इस दौरान बच्चे के फेफड़े गर्भ के बहार सांस लेने के लिए तैयार हो रहे होते हैं। वे पलक झपक सकते हैं, अपना सिर घुमा सकते हैं और उसे पकड़ भी सकते हैं। गर्भस्थ शिशु जन्म के लिए मां के पेल्विस एरिया का नीचे आ जाता है।

जन्म होने से पहले शिशु की कोहनियों, घुटनों और कंधों के आसपास चटर्जी जमा होगी‌। अगर आपके बच्चे के पैसे नीचे की और है यानी ब्रीच पुजिशन में है तो डॉक्टर उसे घुमाने का प्रयास कर सकते हैं या फिर सिजेरियन डिलीवरी (cesarean delivery) के लिए कहा जा सकता है। नौवें महीने में महिलाएं (Women in the ninth month) बैठने या लेटने में बेचैनी महसूस कर सकती है। कुछ महिलाएं थका हुआ महसूस करती है तो कुछ महिलाओं को ऊर्जा में वृद्धि का अनुभव होता है।

प्रेग्नेंसी के नौवें महीने के लक्षण (9 month pregnancy symptoms in hindi)

9 महीने की प्रेगनेंसी में बढ़ता हुआ भ्रूण आपके शरीर पर अधिक दबाव डालता है। प्रेगनेंसी के सामान्य लक्षण (Common symptoms of pregnancy) प्रेगनेंसी के अंत तक जारी रहते हैं। इसके अलावा आपको निम्नलिखित लक्षणों का भी सामना करना पड़ सकता है।

• पेल्विक एरिया पर दबाव : नौवें महीने में गर्भस्थ शिशु का वजन बढ़ रहा होता है और वह अपने संपूर्ण विकास के आखिरी चरण में होता है और वह जन्म के लिए पेल्विक के नीचे हिस्से में आ रहा होता है। ऐसे में महिला को पेल्विक एरिया में दबाव महसूस हो सकता है।

• बार बार युरीन आना : पेल्विक एरिया में दबाव आने की वजह से महिला को बार-बार यूरिन जाना पड़ सकता है। ऐसे में महिला को हाइड्रेटेड रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए।

• पैरों में सूजन : गर्भस्थ शिशु की वजह से गर्भाशय बढ़ता है और इसकी वजह से कुछ नसों पर दबाव आता है। जिसकी वजह से पैरों में सूजन आ सकती है। इससे बचने के लिए लंबे समय तक खड़े रहने से बचना चाहिए और ज्यादा आराम करना चाहिए।

• गैस और कब्ज की समस्या : प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन की वजह से आंतों की सामान्य कार्य प्रक्रिया प्रभावित होती है। जिसकी वजह से गैस और कब्ज की समस्या हो सकती है।

• कमर और पीठ दर्द : नौवें महीने (9 month pregnancy)में वजन बढ़ने की वजह से पीठ और कमर दर्द की परेशानी से गुजरना पड़ता है। इतना ही नहीं नौवें महीने में महिला (Woman in the ninth month) का शरीर डिलीवरी के लिए तैयार हो रहा होता है ऐसे में कमर के आसपास के टिशू ढ़ीले पड़ने लगते है। ऐसे में कमर और पीठ दर्द की शिकायते बढ़ जाती है।

इसके अलावा योनि से स्त्राव होना, त्वचा पर खुजली होना, सोने में मुश्किल होना, सांस लेने में दिक्कत, स्तनों से रिसाव, पेट में तनाव इत्यादि लक्षण देखने मिल सकते हैं।

और पढ़े : प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण?

प्रेग्नेंसी के नवें महीने में बच्चे का विकास ( Baby growth during 9 month pregnancy in Hindi)

प्रेगनेंसी के नवें महीने में गर्भस्थ शिशु (fetus in ninth month of pregnancy) का शारीरिक विकास पूरी तरह से हो चुका होता है।

• शिशु का कद : गर्भस्थ शिशु की लंबाई नौवें महीने (9 month pregnancy)में 20 इंच तक पहुंच चुकी होती है, इतना नहीं उनका वजन भी बढ़कर 3.5 किलो के आसपास पहुंच चुका होता है।

• फेफड़े का विकास : प्रेगनेंसी के आखिर तक गर्भस्थ शिशु के फेफड़े का विकास हो रहा होता है। गर्भ से बहार सांस लेने के लिए फेफड़े का संपूर्ण विकास होना जरूरी है और यह विकास नौवें महीने तक हो जाता है।

• चर्बी का जमा होना : नौवें महीने (9 month pregnancy) में गर्भस्थ शिशु के शरीर के अलग अलग हिस्सों में जैसे कि कोहनियों, घुटनों और कंधों में चर्बी जमा होती है।

• फीटल पुजिशन : आखिरी महीने में गर्भस्थ शिशु जन्म के लिए फीटल पुजिशन में आ जाता है। शिशु पैर सिकुड़ कर घुटने नाक से लगा लेता है। सिर को झुकाकर हाथों से पकड़ लेता है। अगर शिशु ब्रीच पुजिशन में हो तो डॉक्टर सिजेरियन डिलीवरी के लिए कह सकते हैं।

प्रेगनेंसी के 9 महीने में क्या खाना चाहिए (Diet Plan for 9 month of Pregnancy in Hindi)

प्रेगनेंसी के नौवें महीने में मां को और भी ज्यादा ख्याल रखना चाहिए। मां को अपने साथ साथ गर्भस्थ शिशु के लिए निम्नलिखित आहार का सेवन करना चाहिए।

• कैल्शियम : प्रेगनेंसी के नौवें महीने (9 month pregnancy)में कैल्शियम की बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती है इसलिए कैल्शियम युक्त आहार जैसे कि डेयरी उत्पाद, बादाम, दलिया, तिल के बीज का सेवन करना चाहिए।

• आयरन : यह गर्भास्थ शिशु के लिए बहुत जरूरी है। इसके लिए सेब, पालक, खजूर, चिकन जैसी चीजों को अपने डायट में शामिल कर सकते हैं।

• फाइबर : नौवें महीने (9 month pregnancy) में गैस और कब्ज की समस्या बढ़ जाती है। इसमें राहत पाने के लिए फायबर युक्त आहार को अपने डायट में शामिल करें। साबुत अनाज, ओट्स, फल और हरी सब्जियों में फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

• फोलिक एसिड : गर्भस्थ शिशु के दिमाग का विकास 33 से 36वें सप्ताह के दौरान तेजी से हो रहा होता है। ऐसे में फोलिक एसिड से भरपूर आहार को डाइट में शामिल करना चाहिए। इसके अलावा विटामिन C, फोलेट और विटामिन A युक्त आहार का अधिक सेवन करना चाहिए।

और पढ़े : प्रेगनेंसी डाइट चार्ट

नौवें महीने में क्या न खाएं (Foods to avoid during 9 month of Pregnancy in Hindi)

प्रेगनेंसी के नवें महीने में कई चीजें ऐसी हैं जिसके सेवन से मां और गर्भस्थ शिशु को नुक्सान पहुंचा सकता है, ऐसी चीज़ों से दूर रहना चाहिए।

• रॉ मांस और अंडे : कच्चे मांस और अंडे में बैक्टीरिया होते हैं जो मां और गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है।

• कैफीन : नौवें महीने में चाय, कॉफी, चॉकलेट, एनर्जी ड्रिंक जैसे कैफीन युक्त आहार से दूर रहना चाहिए।

• शराब और सिगरेट : प्रेगनेंसी का आखिरी वक्त बहुत ही नाजुक होता है, ऐसे में शराब, सिगरेट और तंबाकू के सेवन से मां और बच्चे दोनों पर खतरा रहता है।

•सॉफ्ट चीज : इसका निर्माण गैर प्रॉश्युरीकृत दूध से होता है। ऐसे में इसके सेवन से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा सैकरीन, जंक फूड, अधपका हुआ मांस, सी-फूड से दूर रहें।

प्रेगनेंसी के 9 महीने की सावधानियां (What Precautions have to take in 9 month of Pregnancy in Hindi)

प्रेगनेंसी के आखिरी महीने में कुछ चीजों को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए जैसे कि

  • पर्याप्त नींद लें और हाइड्रेट रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं
  • मानसिक तनाव से दूर रहें
  • सिगरेट, आल्कोहोल से दूर रहें
  • भारी वजन उठाने से बचें
  • लंबे समय तक खड़े रहने से बचें
  • अचानक उठने या बैठने से बचें
  • एक्स रे से दूर रहें
  • अधिक मेहनत करने से बचें

प्रेग्नेंसी के नवें महीने में होने वाले बदलाव (Changes in body during 9 month of pregnancy in Hindi)

प्रेगनेंसी के नवें महीने में काफी सारे शारीरिक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।

  • गर्भस्थ शिशु का वजन बढ़ने की वजह से पीठ और कमर दर्द
  • स्तनों से कोलोस्ट्रम का रिसाव होना
  • शरीर डिलीवरी के लिए तैयार हो रहा होता है इसलिए पेल्विक एरिया खुलने लगता है
  • लंबे समय तक खड़े रहने में और बैठने में समस्या हो सकती है
  • थकावट और सांस लेने में दिक्कत होना
  • योनि स्त्राव होना

निष्कर्ष

प्रैगनेंसी का सबसे महत्वपूर्ण और नाजुक पर नौवां महीना (9th month pregnancy in Hindi) होता है। इस महीने में गर्भस्थ शिशु का संपूर्ण विकास उसके आखिरी चरण में होता है। महिला का शरीर भी बच्चे के जन्म के लिए तैयार हो रहा होता है। ऐसे में शरीर में भी काफी परिवर्तन आते हैं, जो बहुत ही आम है, लेकिन ज्यादा असहजता होने पर डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

9 महीने में डिलीवरी होने के लक्षण

9 महीने में डिलीवरी लक्षण डिलीवरी होने के 24 से 48 घंटे पहले म्यूकस प्लग निकलना, कमर दर्द तेज हो जाना, बार बार युरीन आना, पानी की थैली का फटना जैसे संकेत मिलते हैं।

कैसे पता चलेगा कि डिलीवरी का समय नजदीक है?

नौवां महीना शुरू होते ही कभी भी डिलीवरी हो सकती है। पानी की थैली फटने पर डिलीवरी का समय नजदीक माना जाता है।

डिलीवरी से कितने दिन पहले दर्द शुरू होता है?

आमतौर पर डिलीवरी के 24 घंटे पहले दर्द शुरू हो जाता है, लेकिन अगर दर्द शुरू न हो तो डॉक्टर इसके लिए दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं।

नोर्मल डिलीवरी होने से पहले कौन से लक्षण दिखाई देते हैं?

नोर्मल डिलीवरी से पहले गर्भस्थ शिशु की वजह से पेल्विक एरिया में दबाव पड़ता है और ब्लेडर सिकुड़ने की वजह से बार-बार युरीन आने लगता है। बच्चे की पुजिशन बदलने की वजह से तेज दर्द शुरू हो जाता है।

प्रेगनेंसी के नौवें महीने में सावधानियां

प्रेगनेंसी के नौवें महीने में पर्याप्त नींद लें और हाइड्रेट रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं, मानसिक तनाव से दूर रहें, सिगरेट, आल्कोहोल से दूर रहें, भारी वजन उठाने से बचें, लंबे समय तक खड़े रहने से बचें, अचानक उठने या बैठने से बचें, एक्स रे से दूर रहें, अधिक मेहनत करने से बचना चाहिए।

 

Dr Rashmi Prasad

Dr. Rashmi Prasad is a renowned Gynaecologist and IVF doctor in Patna. She is working as an Associate Director (Infertility and Gynaecology) at the Diwya Vatsalya Mamta IVF Centre, Patna. Dr. Rashmi Prasad has more than 20 years of experience in the fields of obstetrics, gynaecology, infertility, and IVF treatment.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Call Now